Jai ho...
Rahman won 2 Oscars... I returned to blogging after 2 years...big day..
Just asked my self a couple of questions and had answers enough to fill a dozen pages
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Just asked my self a couple of questions and had answers enough to fill a dozen pages
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ज़रीवाला आसमान कहाँ है....
अगर है यहीं पर तो उसका इल्म क्यूँ नही है ?
क्या वो सिर्फ़ एक तलाश बन के रह गया है ?
क्या वो सिर्फ़ एक तलाश बन के रह गया है ?
क्यूँ उसके नूर की चमक से मैं अब तक बेपरवाह हूँ ?
उसके दीदार से माथे पर सिलवट क्यूँ आ जाती है ?
उसके दीदार से माथे पर सिलवट क्यूँ आ जाती है ?
और क्या वक्त के साथ ये सिलवटें दरारों में तब्दील हो जाती हें ?
जब इंसान सब कुछ हार कर उसके दर पर झुकता है, तो इन दरारों के बीच उसका
नसीब उससे यह भी नही पूछता की ऐ मिटटी की काया,
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"तू पढने की कोशिश में हमेशा, किस्मत को ही लिखना भूल गया...
जब इल्म हुआ की वक्त ले गया वक्त को , आसमान में ज़रीवाला बादल घुल गया "
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इनके लिए ,
अल्लाह रखा रहमान
1 comment:
You are awesomeeeee bhai :)
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